झूठ है प्रेम , समर्पण और
एकसाथ जीने मरने की आस ।
या वो प्रेमशक्ति जो किसी सत्यवान के लिए सावित्री के पास थी ,
सब एक झूठ , सफ़ेद झूठ
कोरी कल्पित कथा ।
मैंने देखी है
पूरा जीवन आहूत कर देने वाली स्त्री
पूजा ,अर्चन, व्रत -उपवास ,प्रेम और समर्पण ।
मैंने देखा है
कंकर पत्थर , कंटीले ,संकीर्ण या संघर्ष भरे रास्तो पर
हाथ थामें साथ लेकर विजयी होते पुरुष को ।
मैंने देखा है दोनों की हार को
दोनों के बिछड़ जाने को ।
इसमें विधान अपनी विधि को लेकर
अट्टाहास करता राक्षस ही लगता है ।
नहीं लगता किसी देव् की कृपा या
जीवनभर इसी बिछड़ न जाने के लिए
आहूत किया गया हर क्षण का फल ।
सब सच है माना
ये भी सच स्वीकारने का भय क्यों
कि ईश्वर तस्वीर में जड़ा
सिर्फ एक सुन्दर फ़्रेम है ।
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