शनिवार, 16 मई 2020

पिता स्मरण

मैं पुराने अल्बमो में संजोए
फोटो देखता हूँ और
उस दृश्य में खो जाता हूँ।
मैं रिकार्ड की गई उनकी आवाज़ सुनता हूँ
और मुग्ध हो जाता हूँ।
मैं पढ़ता हूँ उनकी लिखी रचनाएं,
उनके द्वारा मुझे किए गए वे तमाम मैसेज
और मस्तिष्क में उस समय विशेष की छवि उतर जाती है।
मैं बस याद करता हूँ और पाता हूँ उन्हें अपने साथ।
आँख-कान, हॄदय, मस्तिष्क या कहूँ
देह की प्रत्येक रग और बहते रक्त में
पापा की अनुभूतियां ही तो हैं
जिसमें मैं खो जाता हूँ।
जैसे कोई खोता है अपने ईश्वर में।
मेरा ध्यान,पूजन, अर्चन, यज्ञ, तप सब केवल वही हैं
वही हैं मेरा सम्बल, मेरा विश्वास, मेरा आधार।
■ पिता स्मरण