मंगलवार, 23 जनवरी 2018

बस्स

अब न दुनियादारी का मज़ा
न बहस मुबाहस का
ये रंग नहीं सुहाता अब।
अब कुछ नहीं
अब बस मैं हूँ और मेरी अपनी दुनिया है।
कुछ किताबें हैं , कुछ यादें हैं
कुछ कहानियां, कुछ कविताएं
नदी है , ताल है
पर्वत है , डगर है
कांटे है , फूल है
कुछ सन्नाटे हैं , कुछ मौन है
कुछ अँधेरे हैं, कुछ लौ है
एक सफर है , एक न मालूम सा उद्देश्य है
बस्स।
....... जो दिख रहा 'मैं' है
वो भ्रम है इसके अतिरिक्त कुछ नहीं ।

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