रविवार, 14 जनवरी 2018

सफर ही सूर्य

ठिकानों की तलाश में
भटकने से अच्छा है
सफर का आनंद लेना।
देखो 
सूरज भी उत्तरायण हो गया।
अपने ही अक्ष पर घूमना
या आकाश गंगा के केंद्र की परिक्रमा करना
आसान नहीं होता।
पूरे २५ करोड़ वर्ष लगते हैं
और फिर फिर यही परिक्रमा भी।
न थकना , न हारना
निरंतर गतिमान।
जो निरंतर गति में रहता है
वो सूरज है ,
वो सौर मंडल का अवयव हैं।
कितने सारे रासयनिक विस्फोटो से धधकता
खुद जलता , फिर जलता
जल जल जीवन देता
सबकुच्छ उसकी गति में निहित है
उसकी गति से ही है।
दरअसल
सफर ही जीवन है
सफर ही सूर्य है
मंजिल सूर्य नहीं
क्योंकि मंजिल जीवन को
भस्म कर देती है,
ठीक सूरज की तरह
जो भी उसके करीब गया।

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