मंगलवार, 2 जनवरी 2018

कितने सारे सूरज
अपने चूल्हे को भूल जाते हैं
जिसने उन्हें तपाया
निखारा और आसमान पर पहुंचाया।
कितनी सारी लकड़ियां
जलकर, राख बनकर
हवा में विलीन हो जाती हैं
एक सूरज को आग देने में।
और तमाम सूरज
आदेश देते हैं बादलों को
बारिश के छींटो से बुझा दो सारे चूल्हे और
नम कर दो हवाओं को
कि बैठी रहे धरती पर।
इंसानी रीत में धंसा सच
इतना धंस चुका कि
दिखता नहीं।

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