शुक्रवार, 19 जनवरी 2018

हार्ट अटैक उसे नहीं कहते

डायनिंग टेबल सिर्फ भोजन के लिए नहीं थी
व्यासपीठ की तरह थी
जो खाली पड़ी है ।
यहीं देर तक बात होती थी,
यहीं होती थी डिस्कस...
ढेर सी ज्ञानवर्धक वार्ताओं का स्वाद भी
उतर आता था भोजन में
जो अब नहीं है।
वो टीवी बन्द है
अब नहीं लगते चैनल
समाचार , खेल , भागवत या रामकथाएं
नहीं होती व्याख्याएं
श्लोक आदि इत्यादि के मूल भाव
समझाने वाला कोई नहीं।
समाचार के बाद या उसके बीच राजनीतिक या सामाजिक कितनी सारी बातें
मेरे आलेखों में नहीं उतरती या मैं लिखता ही नहीं अब।
खेल का आनंद ,
मैच का रोमांच और
देश की जीत का जो जश्न हुआ करता था उनके संग
सब , सारा गुम गया है ।
अलसुबह अब चिड़ियाएं भी नहीं चहकती
जिनकी नींद ही उनके जागने के बाद खुलती थी ।
वो मोबाइल मौन पड़ा है
जिससे और जिनपर उनके और मेरे संवाद थे ।
फेसबुक या व्हाट्स एप की बीप उससे नहीं आती अब ।
और न ही वो आवाज़ कि बेटा इसे चार्ज पर रख दो ।
अब सिर्फ अलगनी है
खाली डोर ।
नहीं सूख रहे हैं वस्त्र ।
जिस साबून से वे अपने कपड़े धोते रहे
वो सूख रही है वहीं जहाँ वो रखते थे ।
इस्त्री किए , सलीके से जमी हुई उनकी पोशाकें
करीने से जमी हुई है बैग में ।
बैग वो भी अकेला है
जिसकी जिप बार बार खुलती थी
कभी माँ की दवाओं के लिए ,
कभी ग्लूकोज या इलेक्ट्रॉल के लिए ।
वो तांबे की लुटिया खाली रखी हुई है
जिसमे जल भर दिया करता था मैं ।
मोतियाबिंद के ऑपरेशन के बाद
बने कई चश्मे
अपनी अपनी खोल में दुबके पड़े हैं वहीं
जहाँ वो अवेर के रखते थे ।
और ये सब मेरे जीवन की रगों में
बहने वाला वो रक्त था जो बिना ब्लॉकेज के अनवरत दौड़ रहा था ।
हार्ट अटैक उसे नहीं कहते जो आदमी को आता है
उसे कहते हैं जिसका जीवन पिता के साए में हो
और अचानक सबकुछ स्थिर हो जाए ।
अचानक रुक जाए ।
अचानक जैसे सबकुछ ठहर जाए ।
अचानक सबकुछ स्मृतियां बन जाए ।

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