अलस्सुबह
नहीं आती किचन से आवाज
खटपट की
माँ अब चाय नहीं बनाती है।
नहीं आती किचन से आवाज
खटपट की
माँ अब चाय नहीं बनाती है।
मेरी नींद प्रतिदिन खुलती है
या प्रतिदिन अलस्सुबह उठ जाता हूँ
इसलिए कि वो खटपट की आवाज आएगी।
देर तक अपने कान किचन की ओर लगाए रखता हूँ
या प्रतिदिन अलस्सुबह उठ जाता हूँ
इसलिए कि वो खटपट की आवाज आएगी।
देर तक अपने कान किचन की ओर लगाए रखता हूँ
कि अचानक स्मरण होता है
माँ अकेली है
सो रही है।
उनके बगल वाले बिस्तर पर नहीं हैं पिता।
जो उठते थे
माँ को आवाज लगाते थे
किचन में जाकर माँ
चाय बनाती थी
पिता अपने नित्य कर्म में जुट जाते थे
माँ और सुबह होने के इन्तजार में
फिर लेट जाया करती थी।
माँ अकेली है
सो रही है।
उनके बगल वाले बिस्तर पर नहीं हैं पिता।
जो उठते थे
माँ को आवाज लगाते थे
किचन में जाकर माँ
चाय बनाती थी
पिता अपने नित्य कर्म में जुट जाते थे
माँ और सुबह होने के इन्तजार में
फिर लेट जाया करती थी।
खटपट की आवाज जैसे मौन हुई है
वैसी ही मौन हुई हैं माँ।
वैसी ही मौन हुई हैं माँ।
हम सब अपने आप को व्यस्त रखने में समर्थ हैं
और जिनकी व्यस्तताएं ही पिता से थी
उनके लिये सारी समर्थताओं के अर्थ ही निरर्थक हैं ।
और जिनकी व्यस्तताएं ही पिता से थी
उनके लिये सारी समर्थताओं के अर्थ ही निरर्थक हैं ।
माँ
अब हम बच्चों के लिये
हँसती है
बातें करती है
जीती है....
अब हम बच्चों के लिये
हँसती है
बातें करती है
जीती है....
मां
अब चाय नहीं बनाती है।
अब चाय नहीं बनाती है।
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