शनिवार, 15 दिसंबर 2018

सुबह अब नहीं होती

सर्दियां शुरू हो चुकी है
टुकड़ा धूप का रोज गिरता है
टैरेस पर रखी है कुर्सी
मुंडेर पर फुदकती हैं चिड़ियाएं
प्रतिदिन पानी पी रहे हैं गमलों में लगे पौधे।
चाय जब तब बन रही है
नाश्ते में दलिया भी रोज बनता है
तेल मालिश की शीशी यथावत रखी है।
हाँ, अब अखबार कोई नहीं लाता
कुर्सी पर नहीं बैठता कोई
कोई चिड़ियाओं को नहीं निहारता
वो गिर रहा धूप का मखमली टुकड़ा
व्यर्थ बह जाता है
स्नान धूप का नहीं करता कोई।
चाय में स्वाद नहीं और न ही
दलिया में मलाई डाली जाती है अब।
सचमुच पापा
आपकी सुबह तो रोज होती है मगर
बिना आपके हमारी सुबह अब नहीं होती।
【टुकड़ा टुकड़ा डायरी/12 दिसम्बर 2018】

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