सोमवार, 2 जुलाई 2018

जिसके लिए ही हो तुम

मैं नहीं लिखता
लिख नहीं पाता
लिख ही नहीं सकता
क्योंकि वे शब्दो में समाते नहीं
और न ही मेरी भावनाएं पूर्ण हो पाती है ।
मैं अक्सर छोड़ देता हूँ दिन को
उसके अपने हाल पर।
और बैठक में रखी
कुर्सी पर बैठ कर
रात कर देता हूँ ।
जिस पर बैठा करते थे वो घण्टो
कुछ रचते , कुछ बसते ।
मैं साँसों में भरता हूँ उन्हें
दिल में उतारता हूँ
और चुपचाप गीली आँखों को पोंछते हुए उठ खड़ा होता हूँ
अंतरात्मा में उनकी उस आवाज़ के साथ
कि
उठो!
जगत तुम्हारा इन्तजार करता है
कि जिसके लिए ही हो तुम..

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